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ना जानें हमारे बकवास शायर को रात के ढाई बजे अपनी शायरी सुनाने का भूत कहां से चढ़ा, पर भूत तो भूत है, चढ़ गया है. एक तो बिजली नहीं है ऊपर से इनके बकवास शायरी को झेलो, डबल ट्रेजडी है भइया.
वैसे शायर साहब को देखकर लगता है उनके दिल में दर्द ज्यादा है और चेहरे पर मुस्कान कम.
तो अर्ज है एक और बेशकीमती शायरी का अंश :
“आज मुस्कराने का जी चाह रहा है और गम को भुलाने का जी कर रहा है,
रात के ढाई बजे से बिजली नहीं आई है, बिजली दफ्तर के आगे धरना करने का जी चाह रहा है.”
ओह तो यह बात है ! सबको अन्ना हजारे बनना है, कहीं दांव उलटा ना पड़ जाए और बाबा रामदेव वाला सीन ना हो जाए, वह भी रात के ढाई बजे ही हुआ था.
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